वो एक अधूरे ख्वाब की मौत थी…

ज्योति जैन/ राजस्थान.  

 

शम्स तबरेज़ी की याद में जब रूमी ने अपने आंसू बहाएं तो उन आंसूओं से निकले शब्दों ने जाने कितने साल लोगों के दिलों पर राज किया। विरह का लावा जब हीर रांझा पर बरसा तो सब राख हो गया, लेकिन उस राख से कई लोगों ने तिलक किया। क्या इतने कालजयी शब्द लिख देने के बाद रूमी को मौत का खौफ नहीं रहा था? या उसने अपनी तड़प को खुद से एकाकार करवा कर कई सालों पहले ही एक अदृश्य मौत का वरण कर लिया था?
फिर जो बाकी रहा वो सिर्फ शब्द और रूह थे… उस जिन्दगी से इस जिन्दगी तक का सफर इतना अज़ीबीयत भरा क्यों है?

 

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कल रात एक ख्वाब देखा, बहुत अजीब सा, मेरे ही घर में, मेरे ही कमरे में, इक शख्स इंजेक्शन लिए मेरे सामने खड़ा है। मैं दौड़कर सीढ़िया उतर कर नीचे जाती हूं। वहां खड़े अपने परीवार के लोगों से कहती हूं कि एक आदमी आएगा अभी ऊपर सीढ़ियों से, उसे पकड़ लेना, वो मेरा कातिल है।
सब कहते है, हां ठीक है।
मैं फिर से दौड़कर अपने कमरे में आती हूं। वो शख्स वहीं खड़ा है, इंजेक्शन लिए। मैं बैठ जाती हूं, मेरे बैठ जाने पर वो आदमी मेरे दाहिने पैर की एड़ी में वो इंजेक्शन लगा देता है। जब वो इंजेक्शन की सुई मेरी एड़ी से निकाल रहा था तब मैं उससे पूछती हूं कि ये किस चीज का इंजेक्शन है?
वो कहता है इस इंजेक्शन से तुम्हारे फेफड़ों में वाइरस बनेंगे, जो तुम्हारे फेफड़ों को सड़ा देंगे। मैं मुस्कुरा देती हूं। चेहरे पर कोई शिकन नहीं, बस हल्की मुस्कराहट है। फिर वो एक और इंजेक्शन निकालता है, मैं पूछती हूं ये क्या है? तो वो कहता है ये तुम्हारे खून के लिए है। ये तुम्हारे खून में मिलकर तुम्हारे दिल तक जाएगा और तुम्हारे लिखने के सारे ख्वाब में जहर घोल देगा। मैनें कहा ऐसा कोई इंजेक्शन नहीं होता।

उसने कहा- मगर ये है, खास तुम्हारे लिए।
मैं रिक्त हो जाती हूं, बेज़ार आंखों की कोरों से आंसू की एक-एक बूंद निकलती है। वो आदमी मेरी बांह पकड़ कर इंजेक्शन लगाने लगता है। मैं तड़प उठती हूं। तभी अचानक मेरी आंख खुल जाती है, खुद को देखती हूं “जिन्दा हूं”। फिर अपनी आंखों को छू कर देखती हूं, भीगी हुई है। लाइट जला कर घड़ी देखती हूं, सुबह के 5 बज रहे थे। मैं उठ गई, ये सुबह का सपना था।
लेकिन मैं तो जिन्दा हूं।

मैनें आईने में खुद को देखा… और फिर डायरी पेन लेकर बैठ गयी अपने कत्ल की ये वारदात लिखने।

 

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About jyoti jain

मैं हर सन्नाटे को पिघलाकर उन्हें शब्दों में गढ़ना चाहती हूँ ताकि जो कभी कहा नहीं वो भी सुनाई दें।
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3 Responses to वो एक अधूरे ख्वाब की मौत थी…

  1. Waah…Itna sundar toh mein nhii likh sakti…

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  2. ये बेहद डरावना स्वप्न था, जिसे पढ़ कर रोगट खडे हो गये।

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  3. Saurabh says:

    शानदार

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