ज्योति जैन/ राजस्थान.
उस वक्त उसका जिस्म गर्म भट्टी की तरह तप रहा था। लाल झक्क आंखों से आंसू लावे की तरह बरस रहे थे। वो कभी उंगलियों को मुट्ठी की तरह कसकर भिंचती, कभी फिर छोड़ देती शिथिल। सभी को लगा ये जिस्म का ताप है दवाओं से उतरेगा, मगर उसे पता था ये जिस्म का नहीं रूह का ताप है। ऐसा ताप जो दवाओं से नहीं उतरेगा। उसकी छुअन से उतरेगा।
मगर इस सच के इतर एक और सच था। वो भी सिर्फ उसे ही पता था कि ये छुअन उसके नसीब में है ही नहीं। उसके नसीब में इंतजार है, ऐसा इंतजार जो उसे ताउम्र करना है। वो किसे चुने इंतजार को या मौत को? मरना मुश्किल नहीं है उसके लिए मगर उसका दिल डरता तो इस बात से है कि अगर उसके मरने के बाद वो आया तो? क्या मुंह दिखाएगी उसे कि उसका प्रेम उसे इस ताप से लड़ने की हिम्मत भी नहीं दे पाया?
उसने फैसला किया वो इंतजार करेगी, लेकिन इस बीच अगर वो मौत के सदके हो जाए तो ये तुम्हारा जिम्मा है कि उस आने वाले बादशाह को तुम ये याद दिलाओ कि वो उस मरी हुई लड़की का हाथ थाम ले, कभी ना छोड़ने के लिए कि क्या पता उसकी रूह इस छुअन से फिर जिन्दा हो जाए…
heart touching lines , So real , It is like i am reading not just words but a life ❤️
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Thank you 🙂
it means a lot to me.
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अच्छा लेख है
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शुक्रिया
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Its really words of heart.
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Kabil lfzo’n m ek mashook ki tadap Ka bahut achcha haal bya’ kiya hai
Tu chhoo bhi le agar
Bezaan jism m Jaan aa Jayegi
Wrna log toh yhi kahenge ki
Mar Gaye hum
Jism ke sath sath rooh bhi fanaah ho Jayegi
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शुक्रिया
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Dear Jyoti…
Alfazon Ki kaarigar ho.. Jo bhi likhti ho..use bahut hi shaandaar shuruaat deti ho toh bada hi khubsurat anjaam bhi..
Yun hi kalamkari krti raho…
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बहुत बहुत शुक्रिया 🙂
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ummm … don’t know but I would like to be true to myself … I somehow found it quite dull n flat.
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तारीफ हो या तनकीद मेरे लिए दोनों ही कीमती है। शुक्रिया 🙂
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