खुलेआम होता रक्तपात… दोषी कौन?

Jyoti Jain/ Rajasthan

स्वतंत्रता के इतने दशक बाद भी ऐसा रक्तपात हो जाए तो हम स्वतंत्र कहां है? कहां है स्वतंत्रता? ये कैसी स्वतंत्रता जहां बच्चों को जीने तक का हक नहीं। गोरखपुर हादसे से सरकार लापरवाही और निकृष्टता का जो शर्मनाक चेहरा उजागर हुआ उससे पूरा देश दहल गया। इतना भयावह हादसा जिसने सुना सन्न रह गया। खुलेआम होता ये रक्तपात और दोषी कोई नहीं? 30 बच्चों का रक्तपात, स्कूलों से लेकर सरकारी दफ्तर तक कोई नहीं?
सरकारी महकमे में बैठे नेताओं की निर्दयता इतनी कि मासूम बच्चों की मौत में भी उन्हें राजनीतिक शह-मात के अवसर नजर आ रहे हैं। सत्ता पक्ष में बैठे नेता सारी इंसानियत को तार-तार कर आरोप प्रत्यारोप का खेल खेलने में मगन हैं। एक दूसरे पर कालिख पोती जा रही है। गरीब बच्चों का उनके, उनके माता-पिता का, उनके परिजनों का रूदन सुनाई तक नहीं दे रहा है उन्हें। सभी नेता ऐसे सिंहासन पर विराजमान हैं। जहां मासूमों की चिताओं की धधकती लपटें भी नहीं पहुंच पा रहीं। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा सिवाय़ तबाह हुए उन गरीब मां-बाप के जिन्होंने अपने कलेजे टुकड़ों को अस्पताल में जीवन की उम्मीद से भर्ती किया था और खुद तबाह होकर लौटे। ऐसा ही एक हादसा आज से चार साल पहले बिहार में हुआ था। मीड डे मील से 23 बच्चों मौत हो गई। पेट की क्षुधा शांत करने वाला भोजन ही उन्हें निगल गया।

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पूरी दुनिया के सामने मजाक बन गया मिडडे मील। और अब पूरी दुनिया के सामने मजाक बन गए जीवन दाता कहलाने वाले अस्पताल। सरकारी नुमाइंदे इसे अब भी एक हादसा या दुखद या दुर्भाग्यपूर्ण घटना करार दे रहे हैं। खुलेआम हुए इस नरसंहार को महज एक घटना करार देना कहां तक औचित्यपूर्ण है। ऐसा करने में इन लोगों की आत्मा जरा भी क्यों नहीं झिझकती? समझ में नहीं आता कि गरीबों को मारकर कैसे ये लोग अपने बच्चों से नजरें मिला पाएंगे। मासूमों की इस मौत पर जनता आक्रोशित होगी, विरोध होगा, देश में काफी बवाल होगा मगर नतीजा क्या होगा? सिर्फ सिफर । नेताओं के हो-हल्ला के बीच मासूमों की सिसकियां किसे सुनाई देती? उन बेकसूर बच्चों की मौत भी कुछ ना बदल पायी। नेता जायजा लेते रहेंगें, मुआयना ही करते रहेंगें। तंत्र की जरा सी चूक और 30 लाशों का ढेर। किसने परवानगी दी आदेश को , ये कोई जानना ही नहीं चाहता क्योंकि किसी नेता का बच्चा थोड़ी था। गरीब का बच्चा था, जिसके मरने से कोई सियासी हलचल ही नहीं हुई होगी या उन बच्चों का कसूर था कि वो वोटबैंक नहीं थे, जिनकी मौत से नेताओं की कुर्सियों पर असर पड़ता, और जहां वोट ना हो वहां हमारे पूज्यनीय नेताओं का भला क्या काम…!

लेकिन वे लोग ये भूल रहे हैं कि वे बच्चे वोटबैंक भले ना हों किसी परवार की संतान जरूर थे। गरीब ही सही अबोध बालक थे वे। जिनका इस तरह रक्तपात करने का उन्हें कोई हक नहीं।
अब भी वक्त है वरना जिस दिन जनता कानून अपने हाथ में ले लेगी उस दिन उन्हें बैठने के लिए कुर्सियां तो क्या खड़े रहने के लिए 2 कदम जमीं भी नसीब ना होगी। ऑक्सीजन को हथियार बनाकर ये नरसंहार हुआ है, यदि जनता अपने पर आ गई तो उन्हें सांस लेने के लिए भी वक्त नहीं मिलेगा। इसलिए बेहतरी इसी में है कि वक्त रहते संभल जाए अन्यथा जिस दिन जनता के सब्र का बांध टूट गया उस दिन पूरी सियासत बह जाएंगी।

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मैं हर सन्नाटे को पिघलाकर उन्हें शब्दों में गढ़ना चाहती हूँ ताकि जो कभी कहा नहीं वो भी सुनाई दें।
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5 Responses to खुलेआम होता रक्तपात… दोषी कौन?

  1. Abhijith Padmakumar says:

    What is this post about my friend ?

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  2. praamodyogiraj says:

    सही मायने में दोषी आप और हम ही है।जो बरगलाए गए और बेवकूफ बनाये गए।और अभी भी बन रहे हैं।

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